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मीराबाई का जीवन परिचय

परिचय

मीराबाई, मध्यकालीन भारत की एक प्रसिद्ध संत और भगवान कृष्ण की भक्त थीं। उन्होंने अपने भक्तिमय गीतों और कविताओं के माध्यम से कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त किया। मीराबाई का जीवन साहस, समर्पण और आध्यात्मिकता का एक प्रेरणादायक उदाहरण है।

प्रारंभिक जीवन

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मीराबाई का जन्म 1498 में राजस्थान के कुडकी गाँव में एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता राव दूदा रतन सिंह थे, जो मेड़ता के राठौर शासक थे। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण की भक्त थीं। जब वह पाँच वर्ष की थीं, तो उन्हें एक कृष्ण की मूर्ति मिली, जिसके साथ वह खेलती रहती थीं।

विवाह और वैवाहिक जीवन

1516 में, मीराबाई का विवाह चित्तौड़ के राणा सांगा के सबसे छोटे पुत्र भोजराज से हुआ। हालांकि, भोजराज की मृत्यु 1521 में युद्ध में हो गई। मीराबाई के ससुर ने उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु के लिए जिम्मेदार ठहराया और उनके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया।

कृष्ण भक्ति

मीराबाई के दुखों और संकटों के बीच, उनकी कृष्ण भक्ति एक सहारा बन गई। उन्होंने कृष्ण को अपना प्रियतम माना और उनके लिए भक्ति गीतों और कविताओं की रचना की। उनके भक्ति गीतों को "मीराबाई की पदावली" के रूप में जाना जाता है।

चित्तौड़ से निष्कासन

मीराबाई का जीवन परिचय

मीराबाई की कृष्ण भक्ति उनके ससुराल वालों को स्वीकार्य नहीं थी। उन्हें चित्तौड़ से निष्कासित कर दिया गया और उन्हें निर्वासन में जाने के लिए मजबूर किया गया।

निर्वासन और यात्राएँ

मीराबाई ने कई वर्षों तक निर्वासन में बिताए। उन्होंने वृंदावन, द्वारका और अन्य तीर्थस्थलों की यात्रा की। हर जगह उन्होंने कृष्ण के लिए गाया और नृत्य किया।

द्वारका में मृत्यु

मीराबाई ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष द्वारका में बिताए। 1547 में, 48 वर्ष की आयु में, उनकी कृष्ण के मंदिर में मृत्यु हो गई। यह माना जाता है कि जब वह मंदिर में कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गईं, तो उनका शरीर गायब हो गया।

मीराबाई की भक्ति

मीराबाई की भक्ति निर्वैयक्तिक और साकार दोनों थी। वह कृष्ण को अपने प्रेमी और अपने स्वामी के रूप में देखती थीं। उनकी भक्ति निर्भीक और निःस्वार्थ थी।

मीराबाई की विरासत

मीराबाई की विरासत आज भी जीवित है। उनके भक्ति गीत पूरे भारत और दुनिया भर में गाए जाते हैं। उन्हें भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण संतों में से एक माना जाता है।

मीराबाई के प्रसिद्ध भजन

  • "पायो जी मैंने राम रतन धन पायो"
  • "घनघोर घन घिर आवे"
  • "कोई सेठ की बारी"

मीराबाई के बारे में रोचक तथ्य

  • मीराबाई राजस्थान की एकमात्र महिला शासक थीं।
  • उनके पति भोजराज की मृत्यु के बाद, उन्होंने कभी सती (सहगमन) नहीं किया।
  • उन्हें निर्वासन के दौरान कई बार हत्या का प्रयास किया गया।
  • उनकी मृत्यु के बाद, उनके भक्तों ने उन्हें "मीराबाई की पीर" कहा, जो एक देवी के रूप में उनके सम्मान का प्रतीक था।

मीराबाई के जीवन से सबक

मीराबाई के जीवन से हम कई मूल्यवान सबक सीख सकते हैं, जैसे:

  • आध्यात्मिकता में शरण पाना कठिन समय में हमें सहारा दे सकता है।
  • हमारी भक्ति निर्भीक और निःस्वार्थ होनी चाहिए।
  • हमें अपने विश्वास और मूल्यों में दृढ़ रहना चाहिए, भले ही हमें परिणामों का सामना करना पड़े।

मीराबाई का जीवन परिचय हिंदी में

मीराबाई मध्यकाल की प्रसिद्ध संत और भक्त थीं। उन्होंने कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को भक्ति गीतों में व्यक्त किया। वे राजस्थान के कुडकी गांव में 1498 में पैदा हुईं। पांच साल की उम्र से ही उनकी भक्ति शुरू हो गई थी। 1516 में, उनका विवाह चित्तौड़ के भोजराज से हुआ, जिनकी मृत्यु 1521 में हो गई। उनके ससुराल वालों ने उन्हें कृष्ण भक्ति के लिए प्रताड़ित किया। मीराबाई निर्वासित हो गईं और उन्होंने वृंदावन, द्वारका आदि तीर्थों की यात्रा की। उन्होंने कई भजन लिखे जो आज भी गाए जाते हैं। 1547 में, द्वारका में, 48 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई, जब वह कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गईं। वे भक्ति आंदोलन की प्रमुख संत थीं।

Time:2024-08-17 13:19:47 UTC

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